एक सोच - अर्चना की कलम से

अर्चना लकड़ा जो कि स्वयं एमबीबीएस की छात्रा हैं उन्होंने यह कहानी साझा की है। उनका मानना है कि हमारे छोटे-छोटे कदमों से ही भविष्य की नींव रखी जाती है। हमारा सोचा-समझा गया हर विवेकपूर्ण कदम हमें एक सुंदर भविष्य की ओर ले जाता है तो वहीं, बिना सोचा-समझा गया एक भी गलत कदम हमें उस सुंदर भविष्य से दूर कर सकता है। इसीलिए, कोई भी कदम उठाने से पहले, दो पल लीजिए और उस कदम से होने वाले प्रभावों के बारे में सोचिए।


डॉक्टर ऋत्विक - जिन्होंने अभी-अभी अपनी इंटर्नशिप पूरी की थी - अपना दो साल का रूरल सर्विस बॉन्ड पूरा करने रुतझर गांव के अस्पताल में आये थे। कोरोना महामारी अब गांवों में भी फैल रही थी। रोज़ाना उनकी ड्यूटी लगती थी, क्योंकि ये महामारी जाने का नाम ही नहीं ले रही थी।  अस्पताल में बिस्तरों की कमीं हो गयी थी, सारी व्यवस्थाएँ लाचार हो रही थीं, पर इन हालातों में भी मरीजों का इलाज करना था। स्थिति तब और ज्यादा खराब हो जाती थी जब लोग आखिरी वक्त पर मरीज लेकर आते थे।


खैर! आज का दिन भी अस्पताल में ही बीता और अब अपने रूम जाने का वक्त हो चुका था। ऋत्विक काफी थक गये थे और उन्हें जोरों की भूख लगी थी। उन्होंने रास्ते में दुकान से कुछ सामान लिया और घर की ओर चल दिये। रूम पहुँचते ही उन्होंने सबसे पहले सामान को सेनेटाइज किया, हाँथों को अच्छे से धोया और फिर खाना बनाने लग गये। अभी उनका खाना पूरा बना भी नहीं था कि तभी उनको एक कॉल आया। कॉल उनके दोस्त शैलेश का था। उसने बताया कि उनके कॉलेज के एक दोस्त के साथ कुछ चौबीस लोगों ने मारपीट की है और उसे इतना मारा है कि अब वह अस्पताल में एडमिट है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर यह मारपीट हुई क्यों?


तो हुआ यूँ था कि जूनियर डॉक्टर पारितोष अपनी कोविड ड्यूटी पर थे, सुबह के करीब ग्यारह बज रहे होंगे, एक मरीज उनके पास आया जिसकी तबियत काफी गम्भीर थी, उसे यूरिनरी रिटेंशन भी था। यूरिनरी रिटेंशन पेशाब करने में होने वाली समस्या होती है, जो गम्भीर और जानलेवा भी हो सकती है। पारितोष ने जो प्रोसीजर होता है वह करके उसे ठीक करने का सोचा, पर दुर्भाग्य से उसकी मृत्यु हो गयी। लोग जो उस मरीज के साथ थे, उनको लगा यह डॉक्टर की गलती है और वे उन्हें वही वार्ड में पीटने लग गये। जैसे-तैसे पारितोष अपनी जान बचा कर भागे, वे वाशरूम में जाकर छुप गये। उन लोगों ने उन्हें फिर से ढूंढ निकाला और इस बार, जो भी सामान मिला, वो इन पर फेंकना शुरू कर दिया। कभी बर्तन फेंका तो कभी ईंट फेंकी। अब तो इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल होने लगा था, जिसे डॉक्टर ऋत्विक अभी देख ही रहे थे कि तभी उनके रूममेट भी आ गये, उनको इस बारे में पहले ही किसी ने बता दिया था। वे भी उदास हो गये, गुस्सा भी आया और आये भी क्यों न? लोगों ने बिना सोचे समझे, बिना मृत्यु का कारण जाने, एक निर्दोष डॉक्टर को बेरहमी से पीटा था। आये दिन ऐसी मारपीट की खबरें मनोबल तोड़ती हैं। माना कि कुछ डॉक्टर बुरे होते हैं, लालची भी होते हैं, पर सभी तो नहीं होते न। जान-बूझकर गलती करने पर पिट जाना एक बार के लिये स्वभाविक हो भी सकता है पर, यकीन मानिए, कोई भी डॉक्टर नहीं चाहेगा कि किसी की मृत्यु हो। वो पूरी कोशिश करता है और वह कोशिश ही कर सकता है। आखिर वह भी इंसान ही है, कोई भगवान तो नहीं।


आजकल तो लोगों को गलती करने के बाद भी मार खाना गवारा नहीं होता। फिर, बिना गलती किये कोई क्यों मार खाये? कल को कहीं ऐसा न हो कि कोई गम्भीर मरीज आये और डॉक्टर उसका इलाज करने के बजाय उसे रेफर कर दें, वो भी सिर्फ इसलिये क्योंकि उन्हें रिश्तेदारों से मारपीट का डर हो। ऐसी स्थिति में इसका खामियाजा लोगों को ही भुगतना पड़ेगा, वो भी अपने लोगों को खो कर।


बहुत सारे लोगों को यह भी नहीं पता होता कि सरकारी अस्पतालों में हमेशा सारी सुविधाएँ नहीं होती; बिस्तर कम होते हैं, दवाईयाँ उपलब्ध नहीं होती, स्टाफ-नर्स, वार्ड-बॉय जैसे लोग कम होते हैं और कुछ जगहों पर सीमित व्यवस्थाओं के साथ ही काम करना पड़ता है। गले में टँगा यह स्टेथोस्कोप कोई जादुई छड़ी नहीं है और न ही डॉक्टर कोई भगवान है। मरीज के ठीक होने पर डॉक्टर भी खुश होते हैं और किसी की मृत्यु उन्हें भी आहत करती है। बात इतनी सी है कि कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लें। माना कि अपने परिवार के सदस्य को खोने का दर्द सिर्फ आप ही समझ सकते हैं पर क्या मारपीट से वह वापस आ जायेगा? क्या मारपीट के बाद आपको सुकून मिल जायेगा? या क्या इससे लोगों को एक अच्छा सन्देश जायेगा? नहीं न! उल्टे एक डॉक्टर को मारकर आप हजारो और लोगों की जान जोखिम में डाल देंगे। यहाँ वैसे ही डॉक्टरों की कमीं हो रही है, अच्छे डॉक्टर विदेश जा रहे हैं।


तभी उनके रूममेट ने कहा, "चलो खाना बनाते हैं!" और ऋत्विक अपने ख्यालों से बाहर आ गये। उन्होंने खाना बनाया और खा कर सो गये। रात में उन्हें सपना आया। सपने में उनके पास एक मरीज आया जिसकी हालत बहुत नाजुक थी। उसे किसी जहरीले साँप ने काटा था। उपचार के बाद वह होश में आ गया। उसके परिवारवालों ने डॉक्टर को दुआएँ दीं। वे पैसे भी देने लगे क्योंकि वो बहुत खुश थे। पर ऋत्विक ने पैसे नहीं लिये क्योंकि यह तो उनका काम ही था। तभी एक नर्स आती है और ऋत्विक को नये आये एक मरीज की फ़ाइल देती है। वह एक कोविड मरीज था और उसका एसपीओटू (SpO2) लेवल पचास प्रतिशत से भी कम था। साथ आये लोग रोने लगे। देने के लिये बेड भी नहीं थे पर जैसे-तैसे उसे वेंटिलेशन बेड दिलाया गया और आश्वासन दिया गया कि जैसे ही आईसीयू में बेड खाली होगा, उसे शिफ्ट कर दिया जायेगा। लेकिन शिफ्ट होने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी। लोग गुस्सा होकर वहाँ तोड़-फोड़ करने लगे। डॉक्टर से बदतमीजी की क्योंकि, उनकी समझ से बेड न होना डॉक्टर की गलती थी। चार-पाँच आदमी डंडे लिये डॉक्टर की ओर बढ़ने लगे। तभी अलार्म बजी और ऋत्विक की नींद टूट गयी। वो हाँफने लगे। माथा पूरा पसीने से भीग गया था। उन्होंने राहत की सांस ली। उन्हें अहसास हो गया था कि यह सपना था। आज भी उन्हें ड्यूटी पर जाना था। इसलिए वे झटपट तैयार हुए और अस्पताल की तरफ चल पड़े।



Comments

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    1. Thank you so much for your love and support!

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  2. Truly appreciate your efforts. Mostly that line छोटे छोटे कदमों से ही भविष्य की नीव रखी जाती हैं।
    #thankyoudoctors
    #yaayaawar

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    1. Thank you for your love and support! Let's spread love in the heart of every being!

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  4. Thankyou Suresh 😸...for incouraging me to write this..you are doing a really great work..keep going..✨🙌👍

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    1. Always a pleasure! You should write more....

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  5. Care for the one's who care for you. Respect them and treat them as humas.

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  6. Nice bro lge rho👌👌👍

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  7. This topic is need of the hour in present.😊❤️👍

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  8. Really one of the best writings i have ever seen or heard. Great collaboration and keep growing both of you.

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    1. Thank you Yashwant! I am very happy that you think so!

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