कहानी उस औरत की

घटना १ मई २०२० की है | उसकी उम्र पचास के आस-पास रही होगी | काले रंग की धूल से सनी हुई पुरानी चप्पल, एक पचास रुपये की साड़ी जिसका रंग धूल और मिट्टी ने लगभग उड़ा ही दिया था और सिर पर पीले रंग का तौलिया लपेटे हुए वो दुकान पर आयी | उस पीले तौलिये  से उसका झुर्रियों भरा चेहरा झांक रहा था जो उसकी गरीबी बिना कुछ कहे ही बयाँ कर रहा था | उसे देखकर अहसास हो रहा था मानो उसने सारी उम्र मज़दूरी की हो | उसने अपने साड़ी के पल्लु में बंधे गांठ को खोला और उसमें से एक बीस रुपये का नोट  निकाला | वह बीस रुपये का नोट उसी की तरह कमज़ोर था, ज़रूर उसने भी ताउम्र दुख सहे होंगे | वह नोट उसके हाथों पर ऐसे लटका हुआ था जैसे फांसी पे कोई बेजान लाश लटक रही हो | उसने बड़ी ही दबी आवाज़ में मुझसे कुछ पूछा | जब मुझे कुछ समझ में नहीं आया तो मैंने उससे दोबारा पूछने को कहा | उसने थोड़ा और ज़ोर लगाके सिर्फ इतनी आवाज़ में अपना प्रश्न दोहराया कि जितने में मुझे मुश्किल से सुनाई दे जाये | उसने पूछा, "गुड़ाखू मिलही का?" यह लॉकडाउन का समय था | गुड़ाखू, राजश्री, तम्बाखू और सारी नशीली चीज़ों  का दाम हर रोज़ बढ़ रहा था | दस रुपये के गुड़ाखू का दाम तीस रुपये हो गया था | नशा करने वालों की भी दाद देनी चाहिए इस बढ़ते महँगाई के दौर में भी उन्होंने अपने सामान खरीदने की सूची में  इन नशीली चीज़ों को पहला स्थान दिया हुआ था, यह महँगाई इसी का प्रतिफल था | मैंने कुछ पल के लिए उसे देखा, एक पल के लिये तो उसकी हालत देखकर मुझे लगा कि वह तीस वाली गुड़ाखू उसे मैं बीस में ही दे दूँ पर फिर मैंने उसे बताया, "गुड़ाखू तीस रुपये का एक है माँजी |" नशे की लत लगाना बहुत ही आसान है पर नशे की लत से छूट पाना बहुत मुश्किल | नशे में इंसान सबकुछ बर्बाद कर लेता है | घर, ज़मीन, ज़ायदाद और सबसे कीमती सेहत को भी | एक बार जो इस कुएँ में गिरता है वह गिरता ही चला जाता है | उसके लिये घर, ज़मीन, ज़ायदाद और सेहत का कोई महत्त्व नहीं रहता | उसकी सुबह नशे से होती है और शाम नशे में होती है | नशे के शिकंजे में फंसा व्यक्ति नशे की ही तलाश करता है और नशा न मिलने की स्थिति में बेचैन हो उठता है | ये बेचैनी इस औरत के चेहरे पर साफ़ झलक रही थी | अगर मैं गुड़ाखू उसे चालीस में भी देता तो भी वो लेने को तैयार हो जाती | पर न जाने क्यों मेरा मन उसकी बेचैनी को कम करना चाह रहा था | मैं चाह रहा था की गुड़ाखू उसे बीस रुपये में ही दे दूँ | आख़िरकार भईया ने कह ही दिया, "बीस में ही दे दे |" गुड़ाखू मिलते ही न जाने उसमे कहाँ से जान आ गयी और उसने एकदम साफ़ शब्दों में कहा, "अऊ दस रुपिया क मिठाई दे दे |" और इस बार नोट को अपने हाथों में लटकाये रखने की बजाय उसने पुरे आत्मविश्वास से उसे काउंटर पर रख दिया | ये नोट भी पहले के नोट की तरह बेजान था पर इस औरत में अब जान आ चुकी थी | उसे उसका नशा मिल चुका था |

Comments

  1. Badhiya h , kaiii sexyyy...

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  2. 👍👍👍👍👍 bahut sundar

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  3. Well well yaayaawar....

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  4. राजश्री हे का एको दु ठोक🤣🤣

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  5. Very nice 👍 keep it up😇

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  6. Sare blog ek se badhkar ek..... Each blog shows your personality..Great!....keep it up😊

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    1. Thanks 🙏🏻🙏🏻😊 That's so nice of you 🙏🏻🙂

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  7. Badhiya bro keep it up

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  8. एक सामान्य सी घटना को एक अनोखी दृष्टिकोण देना और उसे गढना... बहुत ही अद्भुत..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद :-)

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