कलियुग जब खड़ा हो गया परब्रह्म के सामने - आशुतोष राणा

(आज कलियुग परब्रह्म के सामने खड़ा है और परब्रह्म को अपनी बेहिसाब ताकत से अवगत करा रहा है। वह उन्हें बता रहा है कि कैसे वह कंस, रावण और दुर्योधन  जैसे योद्धाओं से ज्यादा चालाक और ताकतवर है।)


अब अशुद्धि के लिए मैं शुद्ध होना चाहता हूँ

अब कुबुद्धी को लिए मैं बुद्ध होना चाहता हूँ

चाहता हूँ इस जगत में शांति चारों ओर हो

इस जगत के प्रेम पर मैं क्रुद्ध होना चाहता हूँ

चाहता हूँ तोड़ देना सत्य की सारी दीवारें

चाहता हूँ मोड़ देना शांति की सारी गुहारें

चाहता हूँ इस धरा पर द्वेष फूले और फले

चाहता हूँ इस जगत के हर हृदय में छल पले

मैं नहीं रावण की तुम आओ और मुझको मार दो

मैं नहीं वह कंस जिसकी बाँह तुम उखाड़ दो

मैं जगत का हूँ अधिष्ठाता मुझे पहचान लो

हर हृदय में मैं बसा हूँ बात तुम ये जान लो

अब तुम्हारे भक्त भी मेरी पकड़ में आ गए हैं

अब तुम्हारे संतजन बेहद अकड़ में आ गए हैं

मारना है मुझको तो, पहले इन्हें तुम मार दो

युद्ध करना चाहो तो, पहले इन्हीं से रार लो

ये तुम्हारे भक्त ही अब धुर विरोधी हो गए हैं

ये तुम्हारे संतजन अब विकट क्रोधी हो गए है

मैं नहीं बस का तुम्हारे राम, कृष्ण और बुद्ध का

मैं बनूँगा नाश का कारण तुम्हारे युद्ध का

अब नहीं मैं ग़लतियाँ वैसी करूँ जो कर चुका

रावण बड़ा ही वीर था वो कब का छल से मर चुका

तुमने मारा कंस को कुश्ती में सबके सामने

मैं करूँगा हत तुम्हें बस्ती में सबके सामने

कंस-रावण-दुर्योधन तुमको नहीं पहचानते थे

वे निरे ही मूर्ख थे बस ज़िद पकड़ना जानते थे

मैं नहीं ऐसा जो छोटी बात पर अड़ जाऊँगा

मैं बड़ा होशियार ख़ोटी बात कर बढ़ जाऊँगा

अब नहीं मैं जीतता, दुनिया किसी भी देश को

अब हड़प लेता हूँ मैं, इन मानवों के वेश को

मैंने सुना था तुम इन्हीं की देह में हो वास करते

धर्म, कर्म, पाठ-पूजा और तुम उपवास करते

तुम इन्हीं की आत्मा तन मन सहारे बढ़ रहे थे

तुम इन्हीं को तारने मुझसे भी आकर लड़ रहे थे

अब मनुज की आत्मा और मन में मेरा वास है

अब मनुज के तन का हर इक रोम मेरा दास है

काटना चाहो मुझे तो पहले इनको काट दो

नष्ट करना है मुझे तो पहले इनका नाश हो

तुम बहुत ही सत्यवादी, धर्मरक्षक, शिष्ट थे

इस कथित मानव की आशा, तुम ही केवल इष्ट थे

अब बचो अपने ही भक्तों से, सम्हालो जान को

बन सके तो तुम बचा लो अपने गौरव-मान को

अब नहीं मैं रूप धरके, सज-सँवर के घूमता हूँ

अब नहीं मैं छल कपट को सर पे रख के घूमता हूँ

अब नहीं हैं निंदनीय चोरी डकैती और हरण

अब हुए अभिनंदनीय झूठ हत्या और दमन

मैं कलि हूँ आचरण मेरे तुरत धारण करो

अन्यथा अपकीर्ति कुंठा के उचित कारण बनो


 महा मौन का मुखर घोष;

(परब्रह्म जो अभी तक खामोशी से कलियुग की सारी बातें सुन रहे थे, अपनी चुप्पी तोड़ते हैं।)


तुम बहुत बोले, मैं चुपचाप सब सुनता रहा

तेरे हृदय की वेदना मैं मन ही मन गुनता रहा

है बहुत सा क्रोध तेरे मन में सत् के वास्ते

चाहता तु बन्द करना है सभी के रास्ते

मुझको चुनौती देके तु भगवान होना चाहता है

अज्ञान का पुतला है तु पर ज्ञान होना चाहता है

तु समय का मात्र प्रतिवाद और विवाद है

तु स्वयं ही ब्रह्म उसका नाद होना चाहता है

तु विकट भीषण हलाहल है समय की चाल का

तु स्वयं विश्व का गोपाल होना चाहता है

तु स्वयं को कंस रावण से भी उत्तम मानता है

तु स्वयं को विकट शक्तिशाली योद्धा जानता है

तु नहीं कुछ भी कली इस सत्य को तु जानले

कुछ नहीं है बस में तेरे बात मेरी मानले

तु बीत गया ऐसा कल है या आने वाले कल का छल

मैं वर्तमान का महाराग मैं सदा उपस्थित पुलकित पल

तु बीते कल की ग्लानि है या आने वाली चिंता है

मैं वर्तमान आनन्दित क्षण यह विश्व मुझी में खिलता है

तु कल की बातें करता है मैं कल्कि बनकर आता हूँ

और तेरे कल की बातों को मैं कल्कि आज मिटाता हूँ

तु कलि कपट का ताला है मैं कल्कि उसकी ताली हूँ

तु शंका की महाधुन्ध मैं समाधान की लाली हूँ

कल का मतलब जो बीत गया कल का मतलब जो आयेगा

कल का मतलब जो है मशीन कल वो जो दुख पहुंचायेगा

कल का मतलब जो ग्लानि है, कल का मतलब जो चिंता है

कल का मतलब जो पास नहीं, कल कभी किसीको मिलता है?

कल तो बस एक खुमारी है, कल बीत रही बीमारी है

कल मनुज हृदय की प्रत्याशा, कल तो उसकी बेकारी है

कल वो जिसका अस्तित्व नहीं, कल वो जिसका व्यक्तित्व नहीं

कलयुग तो एक कल्पना है, इसमें जीवन का सत्य नहीं

कली! अभी तु कच्चा है, तु वीर नहीं बस बच्चा है

चल, तुझको आज बताता हूँ, मैं विश्वरूप दिखलाता हूँ

मैं सत्य सनादन आदि पुरुष, मैं सत्य सनातन शक्ति हूँ

मैं अखिल विश्व की श्रद्धा हूँ, मैं मनुज हृदय की भक्ति हूँ

जब सत्य जागता है मुझमें, मैं सतयुग नाम धराता हूँ

जब राम प्रकट हो जाते हैं, तब त्रेतायुग कहलाता हूँ

जब न्याय धर्म की इच्छा हो, तब द्वापरयुग हो जाता हूँ

जब काम, क्रोध, मद, लोभ उठे, तब कलि काल कहलाता हूँ

आनन्द मग्न जब होता हूँ, तब शिव शम्भु कहलाता हूँ

जब प्रलय तांडव नृत्य करूँ तब महाकाल हो जाता हूँ

मैं ही महादेव की डमरू, मैं ही बंशीधर का गान

मैं ही परशुराम का फरसा, मैं ही श्रीराम का बाण

तु रावण का कोलाहल है और कंस का हाहाकार

मैं सृष्टि का विजयनाद हूँ, मनुज हृदय की जयजयकार

तु भी अनंग, मैं भी अनंग, तु संग-संग मैं अंग-अंग

तु है अरूप मैं दिव्यरूप, तु कल है कपट का है कुरूप

तु खण्ड खण्ड मैं हूँ अखण्ड, मैं शान्तिरूप मैं हूँ प्रचण्ड

मैं ही सकार, मैं ही नकार, मैं धुआंधार, मैं ही मकार

मैं ही पुकार, मैं चीत्कार, मैं नमस्कार, मैं चमत्कार

बैरी का बैर, प्रेमी की प्रीत, निर्बल का मान, मैं उसकी जीत

मैं ही हूँ ध्यान, मैं ही अजान, ये आन-बान सारा जहान

मैं ही खटपट, मैं ही झटपट, मैं ही मंदिर मस्जिद का पट

मैं ही इस घट, मैं ही उस घट, मैं ही पनिहारिन और पनघट

मैं ही अटकन, मैं ही भटकन, मैं ही इस जीवन की चटकन

मैं अर्थवान, मैं धर्मवान, मैं मोक्षवान, मैं कर्मवान

मैं ज्ञानवान, विज्ञानवान, मैं दयावान, मैं कृपा निधान

कर्म भी मै हूँ, मर्म भी मै हूँ, जीवन का सब धर्म भी मैं हूँ

जीवन के इस पार भी मैं हूँ, जीवन के उस पार भी मैं हूँ

जीवन का उद्देश्य भी मैं हूँ, जीवन का उपकार भी मैं हूँ

आह भी मैं हूँ, वाह भी मैं हूँ, इस जीवन की चाह भी मैं हूँ

तन भी मैं हूँ, मन भी मैं हूँ, इस जीवन का धन भी मैं हूँ

आन भी मैं हूँ, मान भी मैं हूँ, इस जीवन की शान भी मैं हूँ

ज्ञान भी मैं हूँ, दान भी मैं हूँ, जीवन का अभिमान भी मैं हूँ

जीत भी मैं हूँ, हार भी मैं हूँ, इस जीवन का सार भी मैं हूँ

सन्त भी मैं हूँ, अंत भी मैं हूँ, आदि और अनंत भी मैं हूँ

भूख प्यास और आस भी मैं हूँ, जीवन का विश्वास भी मैं हूँ

तु पार न मुझसे पायेगा, तु तनिक नहीं टिक पायेगा

तु सत्य धर्म के पैरों से, भूमि पर कुचला जायेगा


यह देख कलि का दिल डोला, यह देख कलि विचलित बोला

(कलियुग जिसे अब अपनी वस्तुस्थिति का अनुमान हो गया है, परब्रह्म से विनती भरे स्वर में कहता है।)


मैं धम्म धम्माधम अधम नीच, मैं पड़ा हुआ कीचड़ के बीच

मैं विकट हठी मिथ्याचारी, मैं पतित पुरातन व्यभिचारी

हे दयावान तुम पाप हरो, मेरे कसूर को माफ करो

और अंतस की कालिख को हे स्वामी तुम धीरे धीरे साफ करो


(।समाप्त।।)



आशुतोष रामनारायण नीखरा उर्फ आशुतोष राणा फिल्मी दुनिया के एक चर्चित कलाकार हैं। इन्हें 'दुश्मन' के गोकुल पण्डित और 'संघर्ष' के लज्जा शंकर पाण्डे जैसे नकारात्मक पात्रों के लिये ज्यादा याद किया जाता है परन्तु, असल जीवन में आशुतोष राणा अपने इन नकारात्मक किरदारों से कोसो दूर हैं। असल जीवन में ये हिंदी भाषा के प्रति लगाव और अपनी सादगी-भरी छवि के लिये जाने जाते हैं। एक बेहतरीन कलाकार होने के साथ-साथ ही ये एक अच्छे लेखक भी हैं। 'मौन मुस्कान की मार' और 'रामराज्य' जैसी पुस्तकों के लेखक होने के साथ-ही इन्हें इनकी अन्य स्वरचित कविताओं और व्यंग्यों के लिये भी जाना जाता है। अपनी दमदार आवाज में जब ये कविताएँ या व्यंग्य सुनाते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो उठते हैं।

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