हिंदी की बात

 आज के दिन को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी तारीख को यानी 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी भाषा को एकमत से भारत की राजभाषा बनाने का निर्णय लिया था। गांधी जी ने हिंदी भाषा को जनमानस की भाषा बताया था। सबसे पहली बार हिंदी दिवस 1953 में मनाया गया था। उसके बाद से आज तक हर साल 14 सितम्बर को हिंदी दिवस मनाया जाता है। इस दिन हिंदी भाषा में विभिन्न लोगों द्वारा दिए गये योगदान को याद किया जाता है और हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये कई तरह के कार्यक्रम कराये जाते हैं। 


इस दिन हर तरफ बस हिंदी भाषा की ही बात होती है। इसी कड़ी में मैं भी कुछ यादें आपसे बाँटना चाहूँगा। आज मैं उनकी बात करूँगा जिनके बारे में शायद आपको किसी और से सुनने को न मिले। आज के दिन लोग मुंशी प्रेमचंद जी की बात करेंगे, गांधी जी की बात करेंगे और ऐसे ही न जाने कितने पुण्यात्माओं को याद करेंगे और उन्हें करना भी चाहिए। परन्तु मैं उनसे परे हटकर कुछ और पुण्यात्माओं की बात करना चाहूँगा जिनके बिना मैं शायद हिंदी भाषा को अपने हृदय में वह स्थान नहीं दे पाता जो मैं आज दे पा रहा हूँ।


उनमें सबसे पहले दो नाम हैं बी. आर. चोपड़ा और रामानंद सागर। इन दोनों ने ही क्रमशः महाभारत और रामायण नाम के दो ऐसे धारावाहिक बनाये जिनके पात्र न सिर्फ शुद्ध हिंदी बोलते हैं अपितु भारतीय संस्कृति और शिष्टाचार का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके हर एक शब्द ऐसे लगते हैं मानो वह हमें कह रहे हों कि ये तुम्हारी ही भाषा है इसे स्वीकार करो और जब स्वीकार कर लो तो इसे जन-समुदाय तक पहुँचाओ। मैं अपने पिता को भी इन दोनों महानुभाओं के साथ याद करना चाहूँगा जिन्होंने बचपन से ही मेरे हृदय में हिंदी भाषा की लौ जलाये रखी। ये उन्हीं के कर्मों का फल है जो आज मैं आपसे हिंदी भाषा का प्रयोग करके बात कर पा रहा हूँ। हमारे यहाँ हर साल कृष्ण जन्माष्टमी में लोग एक साथ बैठकर महाभारत और रामायण जैसे धारावाहिकों का रसास्वादन करते हैं। अगर आप कभी घूमने आयें तो आपको लोग टी.वी. के सामने बैठे-बैठे अपने जीवन के सार भी पिरोते नजर आ सकते हैं।


इसके बाद मैं कुछ अनुवादकों को याद करना चाहूँगा। ऐसे अनुवादक जिन्होंने अपनी बेहतरीन अनुवादकता के सम्मोहन में मुझे जकड़कर हिंदी के शृंगार रस से सराबोर कर दिया। इनमें से एक नाम है रांगेय राघव का जिन्हें 'हिंदी साहित्य का शेक्सपियर' भी कहा जाता है। महज 39 वर्ष की आयु तक जीवित रहने वाले इस महान लेखक ने हिंदी के लगभग सारी विधाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। ये मूलतः तमिल भाषी थे परन्तु इन्होंने अपना सारा जीवन हिंदी भाषा के कोषागार को सम्पन्न कराने में लगा दिया। बहुत सारी रचनाओं के अलावा इन्होंने शेक्सपियर के कुछ मशहूर नाटकों का हिंदी में अनुवाद भी किया जिनके वास्तविक नाम और अनुवादित नाम निम्नलिखित हैं -

● एज यू लाइक इट - जैसा तुम चाहो

● हैमलेट - हैमलेट

● मर्चेन्ट ऑफ वेनिस - वेनिस का सौदागर

● ऑथेलो - ऑथेलो

● लव्स लेबर्स लॉस्ट - निष्फल प्रेम

● द टेमिंग ऑफ द श्रू - परिवर्तन

● मच अडु अबाउट नथिंग - तिल का ताड़

● द टेम्पेस्ट - तूफान

● मैकबेथ - मैकबेथ

● जूलियस सीजर - जूलियस सीजर

● ट्वेल्थ नाईट - बारहवीं रात।

मैंने कभी शेक्सपियर को अंग्रेजी में नहीं पढ़ा है। जब भी पढ़ा है इनके अनुवाद के माध्यम से ही पढ़ा है, लेकिन मैं इतना कह सकता हूँ कि शेक्सपियर ने जो भी लिखा होगा वह निःसन्देह अच्छा ही होगा। इन्होंने अपने अनुवाद में भी शेक्सपियर को जीवित रखा है जो एक अनुवादक के रूप में बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसके अलावा हरिवंशराय बच्चन जी ने और रघुवीर सहाय जी ने भी शेक्सपियर के नाटकों का अनुवाद किया है परन्तु मैं उनकी बात अभी नहीं कर रहा हूँ क्योंकि अभी तक मैंने उन्हें पढ़ा नहीं है।


इसके बाद मैं जिस दूसरे अनुवादक के बारे में बात करने जा रहा हूँ उनका नाम है डॉ. सुधीर दीक्षित। इन्होंने जे. के. रोलिंग के हैरी पॉटर को हिंदी प्रेमियों के दिलों तक पहुँचाया है। जितनी रचनात्मकता के साथ जे. के. रोलिंग ने हैरी पॉटर के पात्र को गढ़ा है, लगभग उतनी ही रचनात्मकता का परिचय देते हुए डॉ. सुधीर दीक्षित ने इसे हिंदी भाषा में अनुवाद किया है। इन्होंने इतना अच्छा अनुवाद किया है कि जब आप पढ़ेंगे तो आपको बिल्कुल ऐसा लगेगा जैसे आप स्वयं जे. के. रोलिंग को पढ़ रहे हों। किसी अनुवादक के लिये इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है! 

इसके बाद मैं अपने विद्यालय और वहाँ के शिक्षकों को याद करना चाहूँगा जो हर साल हमारे विद्यालय में हिंदी पखवाड़ा आयोजित करवाते आये हैं और करवाते रहेंगे। उनको याद किये बिना मैं अपनी बात पूरी नहीं कर सकता था। मैं उनसे कहना चाहूँगा कि जो भी सीखा है आपसे ही सीखा है। अपना आशीर्वाद और मार्गदर्शन बनाये रखिये और हिंदी पखवाड़ा रूपी यह ज्योत जलाये रखिये।

और अंत में मैं हर उस शिक्षक, हर उस दोस्त, हर उस पात्र, हर उस व्यक्ति और हर उस वस्तु को याद करना चाहूँगा जिसने हिंदी भाषा से प्रेम किया और उस प्रेम का एक भी अंश मुझ तक पहुँचाया। आपको हृदय से धन्यवाद और सभी को हिंदी दिवस की अनेकोनेक बधाइयाँ!


" हिंदी पढ़िए, हिंदी पढ़ाईए,

जन-जन तक हिंदी को पहुँचाइए।

सभी भाषाओं का आदर कीजिये,

परन्तु हिंदी को माँ की तरह

हृदय से लगाइये।। "


धन्यवाद!


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