खाने की बात

 आज 12 मई 2020 है। बीते दो दिनों से मैं मछली ही खा रहा हूँ। नहीं मै उस बाजार में मिलने वाली बड़ी मछली की बात नहीं कर रहा हूँ। मै तो नदियों में मिलने वाली उन छोटी मछलियों की बात कर रहा हूँ जिन्हें सरगुजा अंचल में सिधरी और मोगरी के नामों से जाना जाता है। मुमकिन है सिधरी और मोगरी नाम इन मछलियों की शारीरिक बनावट को देखकर रखा गया होगा।  सरगुजा अंचल में लोग इन मछलियों को बड़े चाव से खाते हैं। इनके कांटे उतने मजबूत नहीं होते जितने की बड़ी मछलियों के होते हैं। इन्हें बनाने से पहले काटने की भी जरूरत नहीं पड़ती। इन्हें जल्दी से पकाया जा सकता है और इन्हें काटों सहित खाया भी जा सकता है। (मुझे पता है अगर आप शाकाहारी हैं तो आप क्या सोच रहे होंगे!) मैंने न जाने कितनी ही बार इनका सेवन किया है। पिछले दो दिनों से घर में यही बन रहा है। कभी-कभी पापा खुद मछली मारकर ले आते हैं और कभी किसी और के हाथों मंगा लेते हैं। मैं खुद से कभी मछली मारने नहीं गया हूँ। गांवों में तो बहुत सारे बच्चे बंशी-डोर लेकर खुद ही मछली पकड़ने निकल जाते हैं। आज जब मै नदी के पास घूमने गया तो मैंने ऐसे ही एक बच्चे को देखा। उसने नीले रंग का हाफपैंट पहना हुआ था जो ज़रूर उसके स्कूल का यूनिफॉर्म रहा होगा। उसने एक काले रंग का टीशर्ट भी पहना हुआ था। उसके चप्पल प्लास्टिक के बने उन सबसे सस्ते चप्पलों में से एक थे जो सरगुजा अंचल में आमतौर पर बच्चों के पैरों में देखने को मिल जाते हैं। यह दिखने में अच्छे नहीं होते हैं परन्तु बहुत ही हल्के और सालों-साल चलने वाले होते हैं। उस बच्चे के चप्पल, कपड़े और शरीर पर धूल की एक परत साफ झलक रही थी। उसके साथ एक और बच्चा बैठा हुआ था। वह मछली नहीं पकड़ रहा था। वह वहाँ बैठकर उस बच्चे का साथ दे रहा था। उसने जीन्स से बना हुआ हाफपैंट और गुलाबी रंग का चेक शर्ट पहना हुआ था। उसके कपड़े इस बंशी-डोर वाले बच्चे से ज्यादा साफ-सुथरे थे लेकिन उसके भी शरीर पर धूल की परत साफ दिखाई दे रही थी।  यह धूल गांव की निशानी होती है जो बाटी (जिसे कंचे के नाम से भी जाना जाता है) और गुच्ची (जो सिक्कों का एक खेल होता है) जैसे खेल खेलने के कारण शरीर पर लग जाती है। पूछने पर पता चला कि उन्होंने अभी तक दो मछलियां पकड़ ली थीं। उन्होंने उन दोनों मछलियों को दुकान से मिलने वाले एक कैरीबैग में रखा हुआ था। मैंने मन-ही-मन सोचा कि किस मछली का स्वाद ज्यादा अच्छा होगा? वो मछली जो हमें बिना मेहनत के घर पर बैठे हुए खाने को मिल जाती है या वो मछली जिसे हम धैर्य से घण्टो धूप में बैठकर, बंशी-डोर से पकड़कर लाते हैं!

सिधरी मछली


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