सूरज और हम

सूरज किसी पहचान का मोहताज़ नहीं है। सूरज बोलते ही आसमान में चमकते एक गोले की तस्वीर हमारे दिमाग पर बन जाती है। सूरज को दिनकर, प्रभाकर, दिवाकर, भास्कर, भानु, दिनेश, मार्तण्ड, अंशुमाली, सूर्य, रवि और न जाने कितने ही नामों से जाना जाता है। सूर्य अपने तेज के लिये भी जाना जाता है। सूर्य का तेज इतना प्रभावशाली होता है कि अगर आप आँख बंद करके भी इसकी तरफ सिर घुमा लें तो इसके अस्तित्व का एहसास हो जाता है। हमारे देश में तो माँएं अपने बच्चों को सूर्य के समान तेज प्राप्त करने का आशीर्वाद भी देती आयीं हैं। सूर्य हमारे कविताओं में, श्लोकों में, शायरियों में, नामों में, संस्कृति में, दिन में, रात में, खाने में, पीने में यहाँ तक की खुद हममें भी शामिल है। कैसे? यह आपको थोड़ी देर में समझ में आ जायेगा। सूर्य का प्रकाश ही है जो सारे जहाँ को रोशन करता है। वो सूर्य की किरण ही है जिसका इस्तेमाल करके पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं। वो सूर्य की रोशनी ही है जो चाँद को रात में चाँदनी भरने का हुनर देती है। सूर्य ही है जो रोज सुबह उगकर हमें उठने का सन्देश देता है और सूर्य ही है जो सुबह और शाम को अपनी लालिमा बिखेरकर एक शायर को शायरी करने पर मजबूर कर देता है। सूर्य हमारे जीवन के लिये सिर्फ जरूरी नहीं है बल्कि यही हमारा जीवन है। इसलिये सूरज को जानना खुद को जानने जैसा है। अगर सूरज जैसा तेज पाना है तो सूरज जैसे तपना होगा। सूरज का तपना कोई सामान्य क्रिया नहीं है। यह तो काफी रोचक क्रिया है। सूरज के ऊपर दो बल कार्य करते हैं। एक गुरुत्वाकर्षण बल जो उसे बाहर से अंदर की तरफ दबाने की कोशिश करता है और एक उसके खुद के भीतर का दबाव जो उसे अंदर से बाहर की तरफ फैलाने की कोशिश करता है। दोनों ही बल इसके अस्तित्व को मिटाने की कोशिश करते हैं लेकिन, सूरज भी बहुत चालाक है। वह उन्ही बलों का प्रयोग उनके ही खिलाफ करके एक सन्तुलन पैदा करता है और अपने अस्तित्व को न सिर्फ बचाकर रखता है बल्कि हमें यह सन्देश भी देता है कि चाहे कितने भी आंतरिक दबाव या बाहरी बल हमारे खिलाफ काम कर रहे हों, हम हमेशा ही उन दबावों और बलों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। हाँ, यह जितना सुखद अहसास जान पड़ता है उतना है नहीं। सूरज इन बलों  के बीच एक सामंजस्य तो बैठा लेता है लेकिन, इसके फलस्वरूप इसके भीतर का तापमान एक करोड़ पचास लाख डिग्री सेल्शियस हो जाता है। यह इतना ज्यादा होता है कि यहाँ कोई भी पदार्थ अपनी वर्तमान अवस्था छोड़कर इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन का स्वरूप धारण कर लेती है। दरअसल, हमारा शरीर बहुत छोटे-छोटे कणों से मिलकर बना होता है जिसे हम परमाणु या एटम कहते हैं। इन कणों का आकार एक मीटर के एक अरबवें भाग के बराबर होता है। और ये एटम और भी छोटे-छोटे कणों से मिलकर बने होते हैं जिन्हें इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन और न्यूट्रॉन कहा जाता है। तो सूर्य के अंदर इतना तापमान होता है कि हाइड्रोजन और हीलियम के एटम- जिससे सूर्य बना हुआ है- से इलेक्ट्रान, प्रोटोन और न्यूट्रॉन अलग होकर एक समुद्र का स्वरूप धारण कर लेते हैं। अब इनके बीच एक खास तरह का बल कार्य करने लग जाता है जिसे स्ट्रोंग न्यूक्लियर फ़ोर्स नाम दिया गया है। यह बल एक मीटर के एक अरबवें भाग के दस हजारवें भाग पर कार्य करता है। यही बल इलेक्ट्रान, न्यूट्रॉन और प्रोटोन को जोड़कर एटम का रूप देता है। इस तरह सूर्य के भीतर ही आगे के जो एटम्स हैं जैसे कार्बन और ऑक्सीजन जिससे हम बने हुए हैं का निर्माण होता है। जब सूर्य का जीवन समाप्त हो जाता है तो कई बार वह फूट पड़ता है और ब्रह्मांड में बिखर जाता है। इस तरह वो एटम जो सूर्य के भीतर बने होते हैं वो ब्रह्मांड में बिखर जाते हैं। हमारा शरीर भी जिन एटम्स से बना हुआ है वो कभी-न-कभी किसी सूर्य के भीतर बने होंगे। इसलिए अगर आप सूर्य के समान तेज पाना चाहते हैं तो बिल्कुल पा सकते हैं क्योंकि उसका बीज आपमें पहले से ही है।

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