रामगढ़ की नानी
सब उसे मटरौली के नाम से जानते हैं। उसका असली नाम क्या है और वो कहाँ से आयी है ये शायद कोई भी नहीं जानता। सफेद बाल, झुर्रियों से भरा चेहरा और सिकुड़ते हाथ पैर बताते हैं की उसकी उम्र कम-से-कम साठ साल होगी। पिछले दस-बारह सालों से वह गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान में स्थित रामगढ़ नाम के इस छोटे से गांव में रह रही है। दिनभर पूरे गांव में घूमना और जहाँ भी गन्दगी दिखे उसे बिना किसी के कहे साफ कर देना उसकी दिनचर्या का हिस्सा है। दुकानों के सामने फैले प्लास्टिक और गत्तों का ढेर हो या गाय का किया हुआ गोबर हो, उनकी सफाई वह बिना किसी के कहे ही कर दिया करती है। लोगों ने कभी भी उसे मैले कपड़े पहने नहीं देखा है। भले ही उसके पास महंगे डिज़ाइनर कपड़े नहीं है, जो भी हैं वो किसी न किसी के दिए हुए पुराने कपड़े हैं पर जब भी वह अपने साफ सुथरे कपड़ों में बाहर निकलती है तो उसे देखकर उसके आदर्श जीवन की एक झलक मिलती है। हर रोज़ शाम को वह अगरबत्ती जलाकर आस-पास के दुकानों और घरों के सामने से गुज़रती है। कुत्तों, गायों और बकरियों को अगर घरों या दुकानों के अंदर घुसते देखती है तो उन्हें खदेड़ कर भगा देती है। उसके पास अपना खुद का घर नहीं है। शायद इसीलिए हर घर उसे अपना लगता है। मैंने उसे कभी किसी से कुछ मांगते नहीं देखा है। हाँ, हंसी-ठिठोली करना उसे बहुत पसन्द है। पर वह जो बोलती है वो किसीको भी समझ में नहीं आता। न जाने कौनसी जुबाँ में बात करती है। लेकिन उसके हाव-भाव बताते हैं कि उसे सब पता रहता है। वह जब भी कुछ कहती है तो ऐसा लगता है जैसे उसने हमारी ही भाषा में कुछ कहा है लेकिन पाँच गुनी रफ्तार के साथ। कभी-कभी जब लोग उसे बहुत ज्यादा चिढ़ा देते हैं तो उसे गुस्सा आ जाता है। पर गुस्से में भी वह दूसरों को नुकसान नहीं पहुंचाती। कभी गुड़ाखु लेकर जोर-जोर से दाँतों पर घिसने लग जाती है तो कभी बहुत ही छोटी-छोटी लकड़ियों को उठाकर तोड़ने लग जाती है। उसका पूरा शरीर काँपने लग जाता है और वो जोर-जोर से कुछ बड़बड़ाने लगती है। अगर उसके खाने-पीने की बात करें तो उसे हमारी तरह ही अच्छा खाना खाना पसन्द है। उसे जो भी मिलता है उसमें वह हल्दी, मसाले और तेल का इस्तेमाल करके एक अच्छी सब्जी बना लिया करती है। उसके सब्जी की खुशबू से पता चलता है की उसे सब्जी बनाने में महारत हासिल है। कई बार तो उसे अंडे की सब्जी खाने को मिल जाती है तो वहीं कई बार वह अपने लिए कहीं से भाजी ले आती है। कई बार ऐसा भी होता है कि उसे कुछ भी खाना नसीब नहीं हो पाता। तब वह कहीं पर बैठकर अपने पेट की मालिश करती रहती है, इस उम्मीद से कि भूख से जो दर्द उसके पेट में उठ रहा है वह शायद हाथों के स्पर्श से ठीक हो जाये। उसके बाद फिर वह उठती है और किसीके यहाँ साफ-सफाई करने चली जाती है। काम करने के बाद वो चावल या दूसरी चीजें लेकर आती है और उसे बनाकर खाती है। अभी लॉकडाउन के समय तो वो रामगढ़ के बेरियर के पास ही रहती है और हर आने जाने वाले पर नज़र रखती है। लोगों ने उसके इसी समर्पण भाव को देखते हुए उसका राशन कार्ड बनवा दिया है जिससे उसे खाने के लिये कुछ-कुछ मिलता रहे। लेकिन बहुत सारे लोग उसे पागल समझते हैं और कई तो कहते भी हैं। मुझे समझ नहीं आता कि असल में पागल कौन है? वो जो उसे पागल बुलाते हैं या वो जो उसे उसके ठीक से न बोल पाने के कारण उसका मज़ाक उड़ाते हैं? मुझे तो वह गाँव की सबसे बुजुर्ग और सबसे समझदार औरत लगती है। यही कारण है कि मैंने उसे कभी मटरौली कहकर नहीं बुलाया है। मैं जब भी उसे देखता हूँ तो उसे नानी कहकर ही बुलाता हूँ।
ऊँचे कुल में जनमिया, करनी ऊँच न होय ।
ReplyDeleteसबरं कलस सुराभरा, साधू निन्दा सोय ।।
बिल्कुल सही पंक्तियां हैं। 🙏🏻
DeleteBahut sundar suresh bro..
ReplyDeleteThank you Yashwant 😇
DeleteNCERT k liye apply kr tera ekad chapter to pkka add kr lenge 😂 btw boht achha likha👏
ReplyDeleteLol 😂 Thank you 😇
DeleteBahut badhiya Suresh...
ReplyDelete👏
Thank You 🙏🏼😊
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