बचपन
आपकी उम्र पच्चीस हो या पचपन, अगर कोई आपसे पूछे की आपकी जिंदगी का सबसे खूबसूरत लम्हा कौनसा है तो आपका जवाब होगा बचपन। ये जिंदगी का वो खूबसूरत लम्हा होता है जब लोगों की नज़र हमारी गलतियों पर नहीं होती बल्कि हमारी कामयाबी पर होती है। लोग हमारी गलतियों से नाराज़ नहीं होते। वो तो हमारी कामयाबी की प्रतीक्षा करते रहते हैं कि कब हमें कामयाबी मिले और वे हमारी प्रशंसा करें। हम भी कामयाबी की सीढियां चढ़ते जाते हैं। जन्म लेने के तीन से चार सालों के अंदर ही हम अपने पैरों पर चलना और एक नई भाषा बोलना सीख जाते हैं। आश्चर्य की बात तो यह है कि इतने प्रतिभावान होने के बाद भी हम में से कई लोग बड़े होने के बाद अपने आप को बहुत से कामों को करने में असहाय पाते हैं। इसलिए अगर कभी आपको लगे कि कोई काम आप नहीं कर सकते तो अपने बचपन को याद करके देखिये। बचपन बचपने से भरा होता है लेकिन उस उम्र में हम जो ठान लेते हैं वो हम करके ही रहते हैं। हम कोई विकल्प नहीं रखते। चलना सीखना है मतलब चलना सीखना है और बोलना सीखना है मतलब बोलना सीखना है। इसमे कोई अगर-मगर नहीं होता है। हम अपने आप को कभी किसी से कम नहीं आंकते। हर कहानी के हीरो हम ही होते हैं। इन सब के अलावा जो बचपन की सबसे प्यारी यादें होती हैं वो होती हैं कहानियाँ। वो कहानियाँ जो हमें कभी दादी, कभी मां तो कभी पापा सुनाया करते हैं। ये कहानियां सामान्यतः हमें कुछ सिखाने के लिए ही सुनायी जाती हैं। दोस्तों, ऐसी ही एक कहानी है 'मोर ठेकवे नाम ठीक'। कहानी की शुरुआत होती है ठेकवा नाम के एक बच्चे से। यह बच्चा अपनी मां से शिकायत कर रहा होता है। वह कहता है कि उसे अपना नाम पसन्द नहीं है, उसके सारे दोस्त उसे चिढ़ाते हैं। वह अपनी मां से प्रश्न करता है कि क्या उन्हें संसार में कोई दूसरा नाम न मिला जो उन्होंने उसका नाम ठेकवा रख दिया। मां उसे समझाती है कि इस नाम में कोई बुराई नहीं है उल्टे इस नाम में तो उसकी मां का प्यार छुपा हुआ है। मां के मनाने के बाद भी जब वह नहीं मानता है तो उसकी मां उसे कहती है कि वह जाकर खुद एक नाम ढूंढ लाये। एक ऐसा नाम जो उसे अच्छा लगता हो और उसके बाद उसका नाम वही रख दिया जायेगा। इतना सुनकर वह खुश हो जाता है और निकल पड़ता है एक नाम ढूंढने। वह जैसे ही अपने गांव से बाहर निकलता है तो उसे एक औरत दिखाई पड़ती है जो गोबर से अपना घर लीपते रहती है। पूछने पर उसे पता चलता है कि उसका नाम लक्ष्मी बाई है। वह कुछ और आगे बढ़ता है। अब उसकी भेंट एक भिखारी से होती है जिसका नाम दशरथ होता है। उसे लक्ष्मी बाई के गोबर लीपने और दशरथ के भीख मांगने पर बड़ा आश्चर्य होता है। वह और आगे बढ़ता है। अब उसे एक शवयात्रा दिखाई पड़ती है। पूछने पर उसे पता चलता है कि यह अमर सिंह नाम के आदमी की शवयात्रा है। इतना सुनते ही यह बच्चा सीधे घर की ओर भागता है। घर पहुंचने पर जब उसकी मां उससे उसका पसन्द किया हुआ नाम पूछती है तब वह कहता है,
"लक्ष्मी बाई गोबर लीपे, दशरथ मांगे भीख,
अमर सिंह ह मर गे दाई, मोर ठेकवे नाम ठीक।"
nice writing........keep it up........pta nhi tha apne class me itna accha blogger bhi h.
ReplyDeleteShukriya...Karam 🙏🏻😊
ReplyDeleteआपकी इस कहानी को हमने आपकी ही छाया दृष्टि मे रहकर एक नाटकीय रुपांतरण दिया इसके लिए सहृदय आपका धन्यवाद करना चाहूंगा!
ReplyDeleteइससे हमारे बचपन कि यादें ताजा हो गई धन्यवाद!
न जीतने कि चाह थी,
न हारने का गम,
वो भी क्या दिन थे,
जो बीत गया बचपन!
Bahut sahi kha vinay bhai sahab apne
DeleteThank you Vinay 😁 Thank you Yashwant 😊
DeleteBahut accha comment "munim" Bhai ne
DeleteNice story... Keep it up... 👍👍👍
ReplyDelete😊🙏
DeleteExcellent
ReplyDelete🙏😊
DeleteBhahut hi jabrdast , प्रेरणा se bhari kuch बचपन ki यादे liye hui kahani👌👌🤘
ReplyDeleteBhut hi jabardast comment 🙏😊
DeleteBahut sundar likha h bro...
ReplyDeleteThank you 🙏😊
DeleteLast lines bhut shii hai👌
ReplyDelete🙏🏻🙏🏻😊
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